Demand for Rajya Sabha seat in Chandigarh

चंडीगढ़ में राज्यसभा सीट की मांग

Demand for Rajya Sabha seat in Chandigarh

Demand for Rajya Sabha seat in Chandigarh

केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में लंबे समय से विधानसभा के गठन की मांग उठती रही है, अनेक नेता इसके समर्थक रहे हैं कि यहां नगर निगम की बजाय विधानसभा बने। हालांकि एक समय प्रशासन ही शहर में निकाय सुविधाओं की पूर्ति करता था, लेकिन फिर नगर निगम का गठन हुआ। अब नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन विधानसभा के गठन की मांग उठने लगी है। इसकी शुरुआत चंडीगढ़ से राज्यसभा की सीट गठित करने के प्रस्ताव से शुरू हुई है। निगम के 35 पार्षदों ने प्रस्ताव पारित कर प्रशासन को भेजा है, जिसमें कहा गया है कि चंडीगढ़ में राज्यसभा की एक सीट तैयार की जाए। यह एक लंबी प्रक्रिया है, प्रशासन इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजेगा और उस पर फिर अनेक दौर का मंथन होगा। इसकी जरूरत का पता लगाया जाएगा कि चंडीगढ़ जहां अभी एक लोकसभा सीट है, वहां से राज्यसभा के लिए भी एक सीट तैयार की जाए। क्या वास्तव में लोकसभा सांसद इस छोटे से शहर की आवश्यकताओं की पूर्ति करवाने में और देश की संसद में यहां के निवासियों की मांगों को रखने में कामयाब नहीं हो रहा कि राज्यसभा में भी एक सीट शहर की हो। यह जरूरत राजनीतिक है या फिर आबादी के हिसाब से इसकी आवश्यकता पड़ने लगी है, इस पर भी विचार होगा।

  नगर निगम के 35 पार्षदों के प्रस्ताव की अनदेखी नहीं हो सकती, वे शहर की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि राज्यसभा की सीट का प्रस्ताव आनंदपुर साहिब से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी लेकर आए थे, उनके प्रस्ताव के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 80 में संशोधन करके चंडीगढ़ को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि इससे पहले प्रशासन की लीगल ओपिनियन इसके पक्ष में नहीं आई थी, लेकिन प्रशासन के अधिकारी जो सोचते हैं, वह राजनीतिक दलों से संबंधित पार्षदों को रास नहीं आता। यही वजह है कि अधिकारियों की लीगल ओपिनियन के उलट जाकर पार्षदों ने जिसमें भाजपा, कांग्रेस, आप और शिअद शामिल हैं, इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। प्रस्ताव यह है कि अगर इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है तो पार्षद राज्यसभा के लिए उम्मीदवार का चयन करेंगे। यह विधानसभा की तर्ज पर ही होगा। पार्षदों ने इसके लिए दिल्ली का उदाहरण दिया है, दिल्ली में 1966 से 1980 तक विधानसभा नहीं थी। तब निगम के पार्षद ही राज्यसभा के सदस्य के लिए मत डालते थे। अब दिल्ली में विधानसभा है तो विधायक राज्यसभा सदस्य के लिए मतदान करते हैं। चंडीगढ़ में दो नगर निगम बनाने का विचार भी रखा जा रहा है, जिसे नॉर्थ और साउथ का नाम दिया जा रहा है। इसके साथ ही पार्षदों की संख्या में इजाफा करने की मांग भी खड़ी हो रही है।

   हालांकि चंडीगढ़ से जुड़े दो विरोधी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की राय और चिंता पार्षदों की मांग के उलट है। सवाल यह है कि नगर निगम के पार्षदों ने सर्वसम्मति से राज्यसभा की सीट स्थापित करने की मांग तो कर दी लेकिन उससे पहले उन्होंने चंडीगढ़ में विधानसभा बनाने की मांग को लेकर प्रस्ताव क्यों नहीं पारित किया। चंडीगढ़ अब एक दस लाख की आबादी वाला शहर नहीं रहा है, इसका चहुँ दिशाओं में प्रसार हो चुका है और शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और कारोबार का यह गढ़ बन चुका है, बावजूद इसके अभी भी यह नगर निगम के तहत संचालित है। पूर्व सांसद एवं केंद्र सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता सत्यपाल जैन मानते हैं कि चंडीगढ़ में राज्यसभा सदस्य होना ही चाहिए लेकिन उससे पहले यहां विधानसभा गठित की जानी जरूरी है। वे भी कहते हैं कि यहां की आबादी काफी बढ़ गई है, इसलिए अब विधानसभा बनाने पर विचार होना चाहिए। पूर्व सांसद के अनुसार अपने कार्यकाल में उन्होंने चंडीगढ़ में विधानसभा के लिए प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था लेकिन उस समय राजनीति हावी थी और कांग्रेस की ओर से इसका विरोध किया गया था।

  हालांकि, अब कांग्रेस के पूर्व सांसद पवन बंसल जहां राज्यसभा सीट की वकालत करते हैं, वहीं विधानसभा की बजाय वे यहां मेट्रोपॉलिटन काउंसिल गठित करने की भी वकालत कर रहे हैं। जिस दिल्ली का पार्षद उदाहरण दे रहे हैं, वहां राज्यसभा के लिए विधायक नहीं अपितु काउंसिल के सदस्य ही चुनाव करते थे। यह पूरी तरह से सच है कि विधानसभा का गठन बेहद पेचीदा मामला है, संविधान में इसके लिए संशोधन करना होगा। इस संशोधन के बगैर न विधानसभा गठित होगी और बगैर विधानसभा राज्यसभा की सीट तैयार नहीं होगी। ऐसे में यह कोरी बहस का विषय बनकर ही रह जाएगा। संभावना इसकी भी है कि यह राजनीतिक मुद्दाबाजी में अटक जाए। चंडीगढ़ में अनेक ऐसे विषय हैं, जिनका अभी तक समाधान नहीं हुआ है, फिर एक ओर मामला सामने आ चुका है। वैसे, राज्यसभा की सीट मांगने से ज्यादा नगर निगम के पार्षद शहर के मुद्दों को संजीदगी से लें तो यह नागरिकों के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा। लोकसभा सांसद यहां के मामलों में संसद में उठाएं तो भी काफी मसले हल हो सकते हैं। एक समय सिटी ब्यूटीफुल का ताज पहनने वाला शहर आज साफ-स्वच्छ शहरों की सूची में कहीं छिपा हुआ नजर आता है, वहीं बिजली, पानी, पार्किंग को भी दिक्कतें खड़ी हो रही हैं। अगर पार्षद शहर को विकसित बनाने में योगदान नहीं कर सकते तो फिर दो-दो सांसदों से क्या उम्मीद की जा सकेगी?